रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 71

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन-2

Prev.png
स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में दिये गये प्रवचन

(5)

भगवानपि ता रात्रीः शारदोत्फुल्लमल्लिकाः।
वीक्ष्य रन्तुं मनश्चक्रे योममायामुपाश्रितः।।

‘भगवानपि ता रात्रीः’ - सबसे पहले भगवान शब्द है। भगवान शब्द का क्या अर्थ हैं और भगवान ने रमण करने की इच्छा की इसलिये इस रमण का स्वरूप क्या है? इस विषय पर अपनी बातचीत हो चुकी है। रमण शब्द का अर्थ है- आनन्दास्वादन। रमण शब्द व्यवहार होता है लौकिक विलास के लिये भी, रमण शब्द का व्यवहार है आत्माराम महात्माओं के आत्मरमण के लिये भी और यहाँ तो भगवान के रमण की बात है ही। इसमें विषयासक्त और अनासक्त-इन दो प्रकार के गुणों का आनन्दास्वादन है अर्थात यह आनन्द का आस्वादन है। संसार लोगों का तो विषय भोग में और अनासक्त महात्माओं का है आत्म-साक्षात्कार-आत्म-रमण में और भगवान का आनन्दास्वादन है स्वरूपानन्द वितरण में। यह बात अपनी हो चुकी है कि भगवान जब षडैश्वर्यसम्पन्न हैं और पूर्णकाम, नित्यकाम, आप्तकाम हैं तो भगवान में विषयकाम हो नहीं सकता और आनन्दास्वादन इनमें है नहीं। आत्मारामों का जो आत्मरमण है उसमें भी अनासक्त भाव होना चाहिये, सुख की इच्छा होनी चाहिये, मोक्ष की इच्छा होनी चाहिये। वह भगवान में है नहीं-यह स्वयं आनन्द स्वरूप है, आनन्द के मूल हैं। नित्य मुक्त हैं तो इनका आत्मरमण है नहीं फिर इनका क्या है? इनका है स्वरूपानन्द वितरण-यह तीन भेद हैं।

जीव के आनन्दास्वादन का उद्देश्य है-दुःख-निवृत्ति। जो विषय-भोग चाहते हैं वे भी विषय के अभाव में दुःख की अनुभूति करते हैं। उनका आनन्दास्वादन विषय भोग के द्वारा दुःख की निवृत्ति होना है और यह अनासक्त महापुरुष जो हैं वे आत्मसाक्षात्कार के बिना महान दुःख की अनुभूति करते हैं तो इनका आनन्दास्वादन है- आत्मसाक्षात्कार रूप दुःख की निवृत्ति। और भगवान का आनन्दास्वादन है-स्वाभाविक लीला। आनन्दास्वादन तो तीनों का है और तीनों के तीन भेद-उनका विषय भोग से, उनका आत्मरमण से और उनका स्वरूपानन्द वितरण से। परन्तु उसमें प्रयोजन क्या है? जीवों के आनन्दास्वाद का प्रयोजन है दुःख की निवृत्ति और भगवान के आनन्दास्वाद का प्रयोजन है लीला केवल।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
क्रमांक पाठ का नाम पृष्ठ संख्या

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः