रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 53

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन-2

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स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में दिये गये प्रवचन


इसी प्रकार से जितने भी दृष्टान्त या उदाहरण होते हैं ये सर्वतोमुखी नहीं होते। भगवान में दृष्टान्त घटता ही नहीं। भगवान में दोनों बातें आती हैं कि जन्म रहित होते हुए भी जन्म लेते हैं-

‘अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्’[1]

और-

न तेऽभवस्मेश भवस्य कारणं विना विनोदं बत तर्कयामहे।[2]

हे भगवन! आप स्वभावतः जन्म रहित होने पर भी युग-युग में जन्म लेते हैं। यह लीला के सिवाय और कुछ नहीं है। यह भगवान की लीला है।

‘भगवान ने रमण करने की इच्छा की’ रासपञ्चाध्यायी के इस प्रथम श्लोक पर विचार करने पर भगवान का रमण क्या है? उसका उद्देश्य क्या है? इस सम्बन्ध में यह बात हुई कि भगवान का उद्देश्य है - स्वरूपानन्द का वितरण। यह रमण है, यह रसास्वादन भगवान का अपने स्वरूप का लोगों में वितरण करना। अपने स्वरूपानन्द को बाँटना। तो रमण के तीन अर्थ हुए-सांसारिक विलासादि - यह विषयासक्तों का रमण और आत्मारामात-आत्मा में रमण, यह मुमुक्षु महात्मा पुरुषों का रमण तथा अपने स्वरूप के आनन्द का वितरण करना-यह भगवान का रमण। इसलिये भगवान ने रमण किया। यह न लौकिक काम है और न आत्मारामों का रमण है। यह भगवान का रमण है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गीता 4।6
  2. श्रीमद्भा. 10।2।39

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