रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 224

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पाँचवाँ अध्याय

Prev.png
कृष्णविक्रीडितं वीक्ष्य मुमुहुः खेचरस्त्रियः।
कामार्दिताः शशांकश्च सगणो विस्मतोऽभवत्।।19।।

भगवान श्रीकृष्ण की इस प्रेममयी रासक्रीड़ा को देखकर आकाश में विमानों में बैठी देवांगनाएँ भी मिलन की इच्छा से मोहित हो गयीं और चन्द्रमा अपने गणों-नक्षत्रों तथा तारों के साथ आश्चर्यचकित हो गया।।19।।

कृत्वा तावन्तमात्मानं यावतीर्गोपयोषितः।
रेमे स भगवांस्ताभिरात्मारामोऽपि लीलया।।20।।

भगवान श्रीकृष्ण आत्माराम हैं, नित्य स्वभाव से आत्मस्वरूप में ही रमण करते हैं। फिर भी उन्होंने, जितनी गोपरमणियाँ थीं, उतने ही रूपों में अपने को प्रकट करके अपनी लीला से ही-किसी कामना-वासना से नहीं-उनके साथ रमण किया।।20।।

तासामतिविहारेण श्रान्तानां वदनानि सः।
प्रामृजत्करुणः प्रेम्णा शंतमेनांग पाणिना।।21।।

प्रिय परीक्षित! यों बहुत देरतक नृत्य, गान, विहार आदि करने के कारण अत्यधिक श्रम से जब सारी गोपियाँ थक गयीं, तब करुणामय भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं परम शान्तिदायक कोमल कर-कमलों द्वारा बड़े ही प्रेम से उनके मुख-कमलों को पोंछ दिया।।21।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
क्रमांक पाठ का नाम पृष्ठ संख्या

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः