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श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
पाँचवाँ अध्याय
भगवान श्रीकृष्ण की इस प्रेममयी रासक्रीड़ा को देखकर आकाश में विमानों में बैठी देवांगनाएँ भी मिलन की इच्छा से मोहित हो गयीं और चन्द्रमा अपने गणों-नक्षत्रों तथा तारों के साथ आश्चर्यचकित हो गया।।19।।
भगवान श्रीकृष्ण आत्माराम हैं, नित्य स्वभाव से आत्मस्वरूप में ही रमण करते हैं। फिर भी उन्होंने, जितनी गोपरमणियाँ थीं, उतने ही रूपों में अपने को प्रकट करके अपनी लीला से ही-किसी कामना-वासना से नहीं-उनके साथ रमण किया।।20।।
प्रिय परीक्षित! यों बहुत देरतक नृत्य, गान, विहार आदि करने के कारण अत्यधिक श्रम से जब सारी गोपियाँ थक गयीं, तब करुणामय भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं परम शान्तिदायक कोमल कर-कमलों द्वारा बड़े ही प्रेम से उनके मुख-कमलों को पोंछ दिया।।21।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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