राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 46

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीसाँझी-लीला

पद (रास सारंग बृंदाबनी, ताल चौताल)

बैठे हरि राधा संग कुंज भवन अपने रंग,
कर मुरली अधर धरें सारँग मुख गाई ।
मोहन अति हो सुजान, परम चतुर गुन-निधान,
जानि-बूझि एक तान चूकि कैं बजाई ।।
प्यारी जब गह्यौ बीन, सकल कला-गुन प्रबीन,
अति नबीन रूप सहित तान वह सुनाई।
बल्लभ गिरिधरन लाल रीझि दई अंक माल,
कहत भलैं जु सुंदर सुखदाई ।।

दोनौं कुंज भवन में बिराजै हैं। प्रीतम नें मुरली में सारंग राग कौ अलाप लीनौं, तामें एक तान जानि-बूझि कैं असुद्ध बजाई। ताकूँ सुनि कैं स्वामिनी जी ने बीन में वाही तान कूँ अद्भुत ढंग सौं प्रीतम कूँ सुनाई। तब प्रीतम नें बौहौत ही बड़ाई कीनी और प्रिया कौं आलिंगनरूप उपहार दीनौ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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