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श्रीसाँझी-लीला
- सखी-
पद (राग नूरसारंग, ताल मूल)
- चलौ किन देखन कुंज कुटी।
- मदन गुपाल जहाँ मधि नाइक मनमथ फौज लुटी ।।
- सुरत-समर में लरत सखी की मुक्ता-माल टुटी।
- परमानँद गोबिंद ग्वालिनि की नीकी जोट जुटी।।
- समाजी-
(कवित्त)
- जेते द्रुम कुंजनि, कलप-बृच्छ ये प्रतिच्छ,
- दोउन कौं बाँछित दई हैं निधि भलियाँ।
- स्यामा-स्याम करैं केलि आनँद अलोल मत्त,
- बेल नए नेह की अछेह फूल-फलियाँ।।
- दंपति कौ सुख, सोई संपति है नैनन की,
- नागरिया देखि-देखि जीवत हैं अलियाँ।
- नैंक दिन-राति के बिहात की न जानी जात,
- बंदाबन होत नित नई रंग-रलियाँ।।
- बंदाबन आँनद बिहार चारू दंपति के,
- ताकी दिन-रात बात सो सुनि जियौ करौ।
- ललित हिंडोरा, साँझी, रास-रंग, दीपमाला,
- फूलनि की कुंज रुचि रचना कियौ करौ।।
- नित ही बसंत यहाँ, होरी चित-चोरी चाव,
- नागरिया केलि ये सकेलि कैं लियौ करौ।
- दियौ करौ येई अरु येई सुख लियौ करौ,
- येई दिन-रैन रस रसिक पियौ करौ।।
श्री साँझी लीला संपूर्ण
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