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श्रीसाँझी-लीला
सखी- वाकौ नाम कहा हौ?
श्रीजी- सखी! वाकौ नाम तौ मैं नायँ जानूँ; परंतु, हाँ, वाको स्याम तौ रंग हौ और वानें पीरे-पीरे वस्त्र पहरि राखे हे।
सखी- अरी, होयगौ कोई माली। अब बौहौत अबेर है गई, घर पधारौ।
श्रीजी- नायँ, एक बेर वाही कुंज में मोकूँ फिर लै चल।
सखी- प्यारी! काऊ माली सौं बिना हीं बात लरनौ परैगौ, घर चलौ ।
श्रीजी- नायँ सखी! मैं एक बेर तौ वहाँ जाऊँगी ही।
सखी- अच्छौ, नायँ मानौ तौ चलौ।
(सब सखी, श्रीजी फूल बीनती मालती-कुंज की ओर पधारैं)
- समाजी-
- ख्याल (राग बसंत, ताल द्रुत एकताल)
- फुलवा बिनत डार-डार गोकुल की सुकुँवारि,
- चंद-बदनि कमल-नैनि भानु की लली ।
- एरी ए सुघर नारि, चलत न अंचल सम्हारि,
- आवैंगे नंदलाल, देखि कैं डरी ।।
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