राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 325

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीकेवट लीला

दधि बेचन नव नागरी गईं, बिक्यौ न छदाम।
निंदित पुर पुर वासिनी उलटीं अपने धाम।।

सखी- अरी बीर! यहाँ तौ कोई दही-दूध कौ ग्राहक ही न मिल्यौ, अब कहा करैं?
दूसरी- न जानें बीर! आज हम कौन से सगुन ते चलीं हैं।
पद (राग-गारौ, ताल-त्रिताल)

हम कौन सगुनवा बीर! चलीं री।
ना दधि बिक्यौ न दिवस रह्यौ, सखि! या पुर वासिनी बहुत भलीं री।।
दधि की सार न जानत कोई, देखीं सबही गली-गली री।
ललितकिसोरी पायँ लगत हूँ, आज सौं अब या गाम अली री।।
समाजी-

(दोहा)

नवल बधूटी बदत मुख बैन अटपटे बीर।
साँझ समय पहुँची पलटि कालिंदी के तीर।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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