राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 298

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीचंद्रावली-लीला

(सखी हाथ छुड़ाय कैं भाग जाय)

चंद्रावली-

(पद)

प्रभुजी कहाँ गये नेहरा लगाय।
छोड़ि गयौ अब मोहि बिसासी प्रेम कौ दीप जलाय।।
बिरह समुद्र में छोड़ि गयौ पिय! नेहरा की नाव चलाय।
मीरा के प्रभु कब ली मिलौगे तुम बिन रह्यौ न जाय।।

(पटापेक्ष)
शुकदेव- या संसार के जीवन की कैसी विलक्षण गति है! कोई नेम-धर्म में चूर, कोई ज्ञान-ध्यान में मस्त, कोई मत-मतान्तर के झगरे में मतवारे हैं, कोई स्त्री-पुत्र के मोह में डूबे भये हैं। परंतु वह जो परम प्रेममयी अमृत भक्ति है, वाकूँ तौ कोई जानै नहीं है। जानै कैसैं, सब वाके अधिकारी नहीं है। वो रस तौ शंकरजी नें ही पान कियौ है- अहा धन्य, धन्य!
[[[नारद]] आवें, दोनों आपस में प्रणाम करैं]
शुकदेव- कहौ, देवर्षि! या समैं कौन से देस कूँ पवित्र करते पधार रहे हौ।
नारद- प्रभो, या समय में श्री बृंदाबन सौ आय रह्यौ हूँ और वहाँ एक विलक्षण बात देखी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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