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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीचंद्रावली-लीला‘जाके हृदय बुद्धि है जितनी, उतनी ही करि मानत।’ आपकौ जो अखंड परमानंद प्रेम परम सांति दैबेवारो है, वाके सरूप कूँ कोई नहीं जानैं है! वह अमृत तौ वाही कूँ मिलै, जाकूँ आप कृपा करि देऔ! हाय! मैं कौन सौं कहूँ, कौन सुनै?
प्यारे! तुम अंतर्यामी हौ, सब सुनि रहे हौ; परंतु आश्चर्य कि आप के होतें हमारी ये गती। प्यारे! यही गती करनी ही तौ क्यों प्रीत कीनी-क्यों अपनायौ?
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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