राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 293

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीचंद्रावली-लीला

‘जाके हृदय बुद्धि है जितनी, उतनी ही करि मानत।’ आपकौ जो अखंड परमानंद प्रेम परम सांति दैबेवारो है, वाके सरूप कूँ कोई नहीं जानैं है! वह अमृत तौ वाही कूँ मिलै, जाकूँ आप कृपा करि देऔ! हाय! मैं कौन सौं कहूँ, कौन सुनै?
(सवैया)

जग जानत कौन है प्रेम-बिथा, केहि सौं चरचा या बियोग की कीजै।
पुनि को कहि मानै, कहा समझै, क्यों बिनु बात की रारहि लीजै।।
नित जो हरिचंद जू बीतै सहैं, बकि कैं क्यों जग परतीतहि छीजै।
सब पूछत, मौन क्यो बैठि रही, अब प्यारे! कहा इन्हें उत्तर दीजै।।

प्यारे! तुम अंतर्यामी हौ, सब सुनि रहे हौ; परंतु आश्चर्य कि आप के होतें हमारी ये गती। प्यारे! यही गती करनी ही तौ क्यों प्रीत कीनी-क्यों अपनायौ?
(सवैया)

पहिलें मुसिकाय लजाय कछू क्यों चितै मुरि मो मन धाम कियौ।
पुनि नैन लगाय बढ़ाय कैं प्रीत निबाहन कौ क्यौं कलाम कियौ।।
हरिचंद भये निरमोही इते, निज नेह कौ ये परिनाम दियौ।
मन प्रीत जो तोरन की ही हती, अपनाय कैं क्यों बदनाम कियौ।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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