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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीचंद्रावली-लीला(पटापेक्ष)
वाह प्यारे, वाह! तुम और तुम्हारौ प्रेम दोनों विलक्षण हैं। और निश्चै तुम्हारी कृपा बिना कोई जान नहीं सकै है। जानैं कैसैं, वे सब अधिकारी नहीं हैं। जानें जितनौ समझयौ, वानें उतनो ही मान्यौ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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