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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला(श्लोक)
मेरौ प्रिय भक्त जब हाथ में एक तुलसी दल के संग अपने हृदय कमल के सहस्र दल के मधुर और बिचित्र भाव कूँ मिलाय मोकूँ चढ़ावै है, तथा हाथ के एक चुल्लू जल में अपने नैन-कल की प्रेम रसमयी धारा कूँ मिलाय मोकूँ चढ़ावै है, तौ वाके हाथन बिक जाऊँ हूँ। किंतु भाव के बिना स्वर्ण-कलसान में गंगाजल भरि-भरि कैं अभिषेक करावौ, बहुमूल्य आभूषन धरावौ, परंतु मैं हाथ नहीं आऊँ हूँ। कारन कि मेरी-दृष्टि में बस्तु कौ मूल्य नहीं, भाव कौ मूल्य है। भाव सौं छोटी-सी बस्तु हू महान बनि जाय है- मैं वाकूँ तुरंत अंगीकार करि लऊँ हूँ। परंतु भाव के बिना महान बस्तु तुच्छ है जाय है और मैं वाकूँ स्वीकार ही नहीं करूँ हूँ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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