राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 286

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला

(श्लोक)

तुलसीदलमात्रेण जलस्य चुलुकेन वा।
विक्रीणीते स्वमात्मानं भक्तेभ्यो भक्तवत्सलः।।

मेरौ प्रिय भक्त जब हाथ में एक तुलसी दल के संग अपने हृदय कमल के सहस्र दल के मधुर और बिचित्र भाव कूँ मिलाय मोकूँ चढ़ावै है, तथा हाथ के एक चुल्लू जल में अपने नैन-कल की प्रेम रसमयी धारा कूँ मिलाय मोकूँ चढ़ावै है, तौ वाके हाथन बिक जाऊँ हूँ। किंतु भाव के बिना स्वर्ण-कलसान में गंगाजल भरि-भरि कैं अभिषेक करावौ, बहुमूल्य आभूषन धरावौ, परंतु मैं हाथ नहीं आऊँ हूँ। कारन कि मेरी-दृष्टि में बस्तु कौ मूल्य नहीं, भाव कौ मूल्य है। भाव सौं छोटी-सी बस्तु हू महान बनि जाय है- मैं वाकूँ तुरंत अंगीकार करि लऊँ हूँ। परंतु भाव के बिना महान बस्तु तुच्छ है जाय है और मैं वाकूँ स्वीकार ही नहीं करूँ हूँ।

(रसिया)

प्रेमानँद में डूब्यौ जो कोउ, भूल्यौ मोल-सतोल।
वह और मैं मिलि रस ही लूटैं, अधिक कहूँ कहा खोल।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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