राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 267

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीसिद्धेश्वरी-लीला

(पद)

नैक नैन की कोर मोर मोहन बस कीने।
राधे तेरे रूप की पटतर को दीने।।
कमल कोस अलि ज्यौं चलै तारे रँग भीने।
जय श्री भट्ट तनक अंजन छुयें लालन लवलीने।।

राधे, तैंने अपने नेत्रन की कोर की तनक सी मरोर तेई मोहन बस करि राखे हैं। तब मेरे (समग्र) की तौ उपमा कौन दै सकै है। जैसैं कमल की अधिखिलि कली में भौंरा मँडरायौ, करै, तैसैंई तेरे नेत्रन के बीच पूतरी डोल्यौ करै। जब तू अपने नेत्रन में तनक सौ अंजन छुवाय दै, तब तौ लालन (स्यामसुंदर) लोट-पोट है जायँ हैं।

श्रीजी- सखियौ, तुम प्यारे कूँ इनकी मैया के पास लै जावौ और यदि इनकूँ चेत न होय और मैया बहुत घबरावै तौं मोकूँ गहबर बन सौं बुलाय लीजौं।

सखी- जो आज्ञा।

सखी- (मूर्च्छित अवस्था में श्रीकृष्ण कूँ श्रीजसोदाजी के पास लै जायँ)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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