राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 268

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीसिद्धेश्वरी-लीला

(कवित्त)

तामरी खाय कैं भाँमरी दै गिर्यौ,
सुनि री ए मैया गोपाल यह हाल है।
पीरौ पर्यौ मुख, अरु बीरी हू न खावै यह,
बावरौ भयौ है ऐसौ भटू! बेहाल है।।
जागिहै जो बारौ लाल (तौ) जियें सब ब्रजजन,
नातर बिष खाय मरैं गोपी अरु ग्वाल हैं।
कौन-सी वो बाल है, बाँकी-सी चाल है,
लोचन बिसाल है, ठग्यौ जिन लाल है।।
जसोदा-

(पद)

मो निधनी के धनहिं चितावै।
सुनि री, सखी, ऐसौ को ब्रज में, दुखिया के दुखहि मिटावै।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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