राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 256

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीब्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला

तब मैंने कही- ‘क्यों!’ तब वा गोपी ने तुरंत उत्तर दियौ-
(रसिया)

राधे ने गिरिधर गिरि समेत लियौ धारि भौंह की ओर ।।2।।

वाने कही- ‘कन्हैया’ तैनें तो केवल गिरिराज ही उठायौ हौ, किंतु हमारी रासेस्वरी-सर्वेस्वरी राधा ने तौ तो समेत गिरिराज सात दिन, सात रात ताईं अपन एक भौंह की कोर पै ही डाट्यौ हौ, नहीं तौ वाकौ बोझ तेरे बाप पै हू नहीं झिलतौ! अहा, धन्य है या प्रेम कूँ! वास्तव में मेरौ भक्त अनन्य हैकैं मेरौ भजन करै है, तौ मैं वाकूँ कछु दै दऊँ हूँ या कछु उपकार कर दऊँ हूँ। जैसें-
(रसिया)

धुव नें रिझायौ, ऊँचे पद पै बैठायौ,
प्रहलाद नें बुलायौ, दियौ बाप ते बचाय।
चाव गनिका ने धार्यौ, ताकूँ सूवा संग तार्यौ,
नाहिं सबरी ने हार्यौ, दई धाम कूँ पठाय।।
अस्तु, मैंने सबके रिन चुकाय दिये, परंतु या-
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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