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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीब्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला
प्रेम-राज्य कौ सब सौं सुंदर तथा मधुर नाम मेरौ यह माखनचोर है। माया-राज्यवारेन कूँ तो यह नाम ऐसौ लगै है जैसैं खीर में नौन। किंतु- ‘कर्तुं अकर्तु अन्यथा कर्तुं समर्थ ईश्वरः’- यह तौ मोकूँ और ही रूप सौं सोभा देय है। वास्तव में या ब्रज में मेरी ईस्वरता के उपासक नहीं है! किंतु यहाँ तौ ब्रजवासिन कौ स्वामी, सेवक, पुत्र, सखा- जो कछु हूँ सो मैं ही हूँ! यहाँ ईस्वर तौ मेरे पासहू नहिं फटकि सकै है। तौहू कछु एक दिना मोकूँ अपनी ईस्वरता कौ अभिमान है गयौ; क्योंकि मैंने-
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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