राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 255

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीब्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला

नंद-जसुदा कौ लाल, कोई ग्वारिया गोपाल,
कोई जग-प्रतिपाल, कोई कंस कौ निकंद।
कंदहु ते मीठौ नाम एक कहैं प्यारौ माखनचोर ।।1।।

प्रेम-राज्य कौ सब सौं सुंदर तथा मधुर नाम मेरौ यह माखनचोर है। माया-राज्यवारेन कूँ तो यह नाम ऐसौ लगै है जैसैं खीर में नौन। किंतु- ‘कर्तुं अकर्तु अन्यथा कर्तुं समर्थ ईश्वरः’- यह तौ मोकूँ और ही रूप सौं सोभा देय है। वास्तव में या ब्रज में मेरी ईस्वरता के उपासक नहीं है! किंतु यहाँ तौ ब्रजवासिन कौ स्वामी, सेवक, पुत्र, सखा- जो कछु हूँ सो मैं ही हूँ! यहाँ ईस्वर तौ मेरे पासहू नहिं फटकि सकै है। तौहू कछु एक दिना मोकूँ अपनी ईस्वरता कौ अभिमान है गयौ; क्योंकि मैंने-
(रसिया)

गिरि कूँ पुजाय, इंद्र-यज्ञ कूँ मिटाय,
लियौ ब्रज कू बचाय मैंटि व्याल-अग्नि ब्याधि।
ब्याधि मैंटि गर्व आयौ, मैंने गिरि कूँ उठायौ,
एक गोपी ने सुनायौ तेरी सब झूठी साध।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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