देवी- अजी बहन! तब ही वे आपकूँ छोड़ि कैं अन्य गोपी के यहाँ चले गये हैं।
श्रीजी- हे देवांगने, हमारे प्यारे अन्य गोपीन तें जथावत् प्रीति के अनुसार प्रेम करैं हैं याते प्यारे अपराधी नहीं होय हैं। और दैवजोग ते कबहुँ कहूँ क्रीड़ा कौ बिपरीत क्रम हैजायवे ते हू प्यारे सुखी नहीं होय हैं और बिघ्न है वे ते जब मेरे संग कोई खेल नहीं करि पावैं तोऊ उनकौ चित्त मोही में लग्यौ रहै है। मेरी प्यारी दुखी हौंती होयँगी, यों सोचि कैं काहू और गोपी के द्वारा रोके जायवे पै हू वे जद्यपि वा गोपी के संग खेलैं हैं। परंतु वा समय हू मेरे दुःख कौ ध्यान प्रियतम कूँ बन्यौ ही रहै है। यही मोकूँ छोड़ि कैं अन्य गोपी के यहाँ मेरे प्यारे के जायबे कौ कारन है। अब रास में मोकूँ अकेली छोड़ि कै जायबे कौ हू कारन सुनौ।
संपूर्ण गोपीन कूँ त्यागि कैं प्रियतम ने मेरे संग बिहार कियौ, याकूँ तौ तुम अच्छी तरह जानौ ही हौ।
देवी- अजी, हम कहा- यह तौ सब संसार ही जानै है।
श्रीजी- सुनौ, हमकूँ अतुल सौभाग्यरूपी दिब्य रत्नसिंहासन पै बैठाय अनेक पुष्पादि सामग्रीन ते सिंगार कियौ और फिर एक बन ते दूसरे बन कूँ जाते भये और कोई अन्य कांता कौ हू उनने स्मरन नहीं कियौ! फिर मैंने ही अपने मन में बिचार कियौ कि मेरी प्यारी सखीन ने मेरे और प्रियतम के एकांत बिहार-सुख कूँ नहीं देख्यौ। और एकांत बिरह-ज्वर-पीड़ित वे न जानैं कहा करती होयगी। अतः यदि मैं काहू मिस करि यहीं ठहरि जाऊँ, तौ संभव है हमें खोजती सखीगन कहूँ ते आय जायँ और हम सौं मिल जायँ। ऐसौं सोचि कैं मैंने प्रियतम ते मिस कियौ कि अब और मैं चलि नायँ सकूँ हूँ अतः यहीं बिश्राम करूँगी।