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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीप्रेम-सम्पुट लीला(दोहा)
हे देवांगने, हमारे प्यारे के प्रति जो ब्रजजुवतिन में भाव है, वह काम-गंध ते रहित है और प्रियतम तौ मात्र प्रेम के ही आधीन हैं- ऐसौं मैंने अनुभव कियौ है।
हे सखी, गोपीगन मेरे प्रति अनुराग करैं हैं, यह लोगन कूँ झूठौ प्रतीत नहीं होय है। और स्यामसुंदर मेरे प्रेम कूँ सुमेरु के समान मानैं हैं और अन्य ब्रज-सुंदरीन के प्रेम कूँ तीन-चार सरसौं के दाने के बराबर हू नहीं मानैं हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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