राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 245

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-सम्पुट लीला

(दोहा)

ब्रजजुवतिन में भाव जो काम-गंध ते हीन।
प्राननाथ एक रहत हैं सदा प्रेम-आधीन।।

हे देवांगने, हमारे प्यारे के प्रति जो ब्रजजुवतिन में भाव है, वह काम-गंध ते रहित है और प्रियतम तौ मात्र प्रेम के ही आधीन हैं- ऐसौं मैंने अनुभव कियौ है।
(पद)

प्रेम में निसिदिन बसत मुरारी।
प्रेम ही तन-मन, प्रेम ही जीवन, प्रेम पगे बनवारी।।
प्रेम अहार, बिहार निरंतर, प्रेम करत ब्यवहारी।
सूर स्याम प्रभु प्रेम रंगे हैं, और नहीं अधिकारी।।

हे सखी, गोपीगन मेरे प्रति अनुराग करैं हैं, यह लोगन कूँ झूठौ प्रतीत नहीं होय है। और स्यामसुंदर मेरे प्रेम कूँ सुमेरु के समान मानैं हैं और अन्य ब्रज-सुंदरीन के प्रेम कूँ तीन-चार सरसौं के दाने के बराबर हू नहीं मानैं हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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