राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 24

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला

यशोदा- तौ सखीयौ, तुमहीं लै आऔ।
सखी- नहीं, नहीं हम स्याम-कलंकिनी हैं।
यशोदा- अरी, एक जटिला नाम की वृद्धा जावट में रहै हैं, वाकूँ बुलाऔ।
(जटिला कूँ बुलाय सब बात कहनी)
जटिला- मैं अपनी सती-बल सौं कठिन सौं-कठिन काम करि सकूँ हूँ अबहीं जाऊँ।
समाजी-
(चौपाई)

जबही पाँव सेतु पै डार्यौ, सो तौ बल नैंकहुँ नहिं धार्यौ ।।
टूटि गयौ सो पाँव धरत ही, सो जमुना में जात बहत ही ।।
ताही छिनु जो भई नभ बानी, भरि न सकौ तुम जमुना पानी ।।
हौ तुम सती सो ब्रज नें चीन्ही, तुम राधा की निंदा कीन्ही ।।
तुम्हरौ सब बल घटि गयौ तासौं, सेतु न पार करि सकौ यासौं।।

वैद्य- मैया, मैं और उपाय बताऊँ हूँ ब्रज में एक परम सती हैं, उनकी चरन-रज सौं बिस्व पावन होयगौ। उनहीं कूँ बुलाऔ। उनकौ नाम है श्रीराधा वे वृषभानुजी की पुत्री हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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