राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 177

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

(श्लोक)

अत्रावरोपिता कान्ता पुष्पहेतोर्महात्मना।
अत्र प्रसूनावाचयः प्रियार्थे प्रेयसा कृतः।
त्रपदाक्रमणे एते पश्यतासकले दे।।

अर्थ- देखौ, देखौ, यहाँ परम प्रेमी ब्रजवल्लभ नें फूल चुनिबे के लियें अपनी प्रेयसी कूँ कंधा सौं नीचें उतारि दियौ है और यहाँ श्रीकृष्ण नें फूल बीने हैं। उचकि-उचकि कैं फूल तोरिबे सौं यहाँ अँगुरिया तौ दीखैं हैं, परंतु एड़ी नहीं दीखै हैं।
(तुक)

आगें चलि पुनि अवलोकी नवपल्लव सैनी।
जहँ पिय नजि कर कुसुम कुसुम लै गूँथी बेनी।।

(श्लोक)

केशप्रसाधनं त्वत्र कामिन्याः कामिना कृतम्।
तानि चूडयता कान्तामुपविष्टमिह ध्रुवम्।।

अर्थ- देखौ, सखी! परम प्रेमी श्रीकृष्ण ने यहाँ अपनी प्रेयसी के केस सँवारे हैं। बेनी गूँथिबे के लियें यहाँ अवस्य बैठे होंयगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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