राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 173

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

Prev.png

श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

(फूल तोरिकैं फिर सब सिंगार करनौ)

समाजी-

पद (राग हमीर)

बैनी सुंदर स्याम गुही।
राजत रुचिर सीस स्यामा के चंपक और जुही।।
नख-सिख लौं पहिराये भूषन दै बीरी मुख ही।
चत्रभुज प्रभु गिरिधरन लाल के सुख की रास तुही।।

ठाकुरजी- हे किसोरी जू, यहाँ सखी आवत होंयगी, सो दूसरे बन में पधारौ!
[दूनोंन को पधारनौ। फिर सखी ढूँढ़ती भई आवैं।]
(तुक)

जहँ निरखे ढिंग जगमगात प्यारी पिय के पग।
चितै परस्पर चकित भईं जुरि चली तिहीं मग।।
Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः