राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 172

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

(तुक)

भृंगी भय तैं भृंग होत इक कीट महाजड़।
कृष्न-भगति तैं कृष्न होत कुछ नहिं अचरज बड़।।

(दोहा)

कुंज कुंज ढूँढत फिरीं खोजत दीन-दयाल।
प्राननाथ पाये नहीं (तब) बिकल भईं ब्रजबाल।।

(श्लोक)

एवं कृष्णं पृच्छमाना वृन्दावनलतास्तरून।
व्यचक्षत वनोद्देशे पदानि परमात्मनः।।
अरी सखियौ! चलौ, दूसरे बन में ढूँढ़ैंगी।

[सखी सब ढूँढ़ती भईं आगैं पधारैं।] [फिर ठाकुरजी एवं श्रीजी पधारैं।]
ठाकुरजी- हे प्यारी! यहाँ काँकर और तृन-कंटक बहुत हैं, सो मैं आपकूँ गोदी में लै लऊँ।– [थोड़ी दूर लै चलनौ] हे प्यारी! आप यहाँ विराजौ, मैं आपको बेनी गूँथिबे कूँ फूल लै आऊँ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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