राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 167

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

(दोहा)

कृष्न चरित गोपिन कियौ, बिरहा ब्याप्यौ बाल।
एक भई तब पूतना, एक भए गोपाल।।

[सब मिलि कैं लिला करैं। कोई गोपी, तौ कोई गोपाल, कोई पूतना, कोई जसोदा, कोई सकटा, कोई तृना बनै।]
(तुक)

एक भये गुपाल लला री, जिन दुष्ट पूतना मारी।।


(श्लोक)

कस्याश्चित पूतनायन्त्याः कृष्णायन्त्यपिबत् स्तनम्।
समाजी-
कोउ पूतना होय लाल कूँ दूध पिवावै।
कोउ सकटासुर होय चरन सौं उलटि दिखावै।

अर्थ- एक पूतना बनी तौ दूसरी कृष्न बनि कैं वाकौ स्तन पीवे लगी। एक छकड़ा बनि गई, दूसरी में कृष्न बनि कैं वाकूँ पाम की ठोकर तें उलटि दियौ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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