राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 145

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

Prev.png

श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

ठाकुरजी-

पद (राग सूही बिलावल, ताल त्रिताल)

यह जुबतिनि कौ धरम न होई।
धिक सो नारि, पुरुष जो त्यागै, धिक सो पति जो त्यागै जोई।।
पति कौ धर्म यहै प्रतिपालै, जुबती सेवा ही को धर्म।
जुबती सेवा तऊ न त्यागै, जौ पति करै कोटि अपकर्म।।
बन में रैनि-बास नहिं कीजै, देख्यौ बन बृंदाबन आइ।
बिबिध सुमन, सीतल जमुना-जल, त्रिबिध समीर परस सुखदाइ।।
घर ही मैं तुव धर्म सदाई, सुत पति दुखित होत, तुम जाहु।
सूर स्याम यह कहि परबोधत, सेवा करहु जाइ घर नाहु।।
Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः