राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 146

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

सखियाँ-

पद (राग जैतश्री अथवा पददीप)

तुम हो अंतरजामि कन्हाई।
निठुर भए कत रहत इते पर, तुम नहिं जानत पीर पराई।।
पुनि-पुनि कहत जाहु ब्रज सुंदरि, दूरि करौ पिय! यह चतुराई।
आपुहि कही, करौ पति-सेवा, ता सेवा कौं हैं हम आईं।।
जो तुम कहौ, तुमहिं सब छाजै, कहा कहैं हम प्रभुहि सुनाई।
सुनहु सूर ह्याईं तनु त्यागैं, हम पैं घोष गयौ नहिं जाई।।


पद (राग जैतश्री)

निठुर बचन जनि बोलहु स्याम।
आस निरास करौ जनि हमरी, बिकल कहति हैं बाम।
अंतर-कपट दूरि करि डारौ, हम तन कृपा निहारौ।
कृपा सिंधु तुम कौं सब गावत, अपनौ नाम सम्हारौ।।
हम कौं सरन और नहिं सूझै, का पै हम अब जाहिं।
सूरदास प्रभु निज दासिनी की, चूक कहा पछिताहिं।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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