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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला
- सखियाँ-
पद (राग जैतश्री अथवा पददीप)
- तुम हो अंतरजामि कन्हाई।
- निठुर भए कत रहत इते पर, तुम नहिं जानत पीर पराई।।
- पुनि-पुनि कहत जाहु ब्रज सुंदरि, दूरि करौ पिय! यह चतुराई।
- आपुहि कही, करौ पति-सेवा, ता सेवा कौं हैं हम आईं।।
- जो तुम कहौ, तुमहिं सब छाजै, कहा कहैं हम प्रभुहि सुनाई।
- सुनहु सूर ह्याईं तनु त्यागैं, हम पैं घोष गयौ नहिं जाई।।
पद (राग जैतश्री)
- निठुर बचन जनि बोलहु स्याम।
- आस निरास करौ जनि हमरी, बिकल कहति हैं बाम।
- अंतर-कपट दूरि करि डारौ, हम तन कृपा निहारौ।
- कृपा सिंधु तुम कौं सब गावत, अपनौ नाम सम्हारौ।।
- हम कौं सरन और नहिं सूझै, का पै हम अब जाहिं।
- सूरदास प्रभु निज दासिनी की, चूक कहा पछिताहिं।।
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