राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 128

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

(श्लोक)

श्रवणाद् दर्शनाद् ध्यानान्मयि भावोऽनुकीर्त्तनात्।
न तथा संनिकर्षेण प्रतियात ततो गृहान।।

हे गोपियौ, फिर मेरे नाम-गुन-लीला आदि के श्रवन सौं, दूर सौं ही मेरौ दरसन करिबे सौं, निरंतर मेरे रूप कौ चिंतन ध्यान करिबे सौं और मेरे नाम-गुनन के कीर्तन सौं जो भाव और प्रेम मोमें दूर सौं होय है, वैसौ समीप सौ नायँ होय। यासौं तुम सब अपने-अपने घरन कूँ बगदि जाऔ।

(श्लोक)

समाजी-
इति विप्रियमाकर्ण्य गोप्यो गोवन्दभाषितम्।
विषण्णा भग्नसंकल्पाश्चिन्तामापुर्दरत्ययाम् ।।
कृत्वा मुखान्यव शुचः श्वसनेन शुष्यद्बिम्बाधराणि चरणेन भुवं लिखन्त्यः।
अस्त्रैरुपात्तमषिभिः कुचकुकंमानि तस्थुर्मृजन्त्य उरुदुखभराः स्म तूष्णीम्।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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