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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला(श्लोक)
हे गोपियौ, फिर मेरे नाम-गुन-लीला आदि के श्रवन सौं, दूर सौं ही मेरौ दरसन करिबे सौं, निरंतर मेरे रूप कौ चिंतन ध्यान करिबे सौं और मेरे नाम-गुनन के कीर्तन सौं जो भाव और प्रेम मोमें दूर सौं होय है, वैसौ समीप सौ नायँ होय। यासौं तुम सब अपने-अपने घरन कूँ बगदि जाऔ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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