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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला(श्लोक)
अर्थ- हे भामिनियौ! अपनौ पति दुस्लील होय, बिना भाग्य कौ होय, बृद्ध, जड, मूर्ख, रोगी-कैसौ हू क्यौं न होय, परंतु स्त्रीन कूँ तौ पति की सेवा अवस्य करनी चाहियै। पातकी की हू सेवा करनी, परंतु वाकी सेवा दूर ते करनी चाहियै।
हे महाभागाऔ, जो स्त्री अपने पति की सेवा करै है वाकी याहू लोक में बड़ाई होय है और अंत समय में स्वर्ग हू प्राप्त होय है। जो पति की सेवा नायँ करै, वाकी याहू लोक में निंदा होय और पीछें तौ नरक प्राप्त होय है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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