राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 127

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

(श्लोक)

दुश्शीलो दुर्भगो वृद्धो जडो रोग्यधनोऽपि वा।
पतिः स्त्रीभिर्न हातब्यो लोकेप्सुभिरपातकी।।

अर्थ- हे भामिनियौ! अपनौ पति दुस्लील होय, बिना भाग्य कौ होय, बृद्ध, जड, मूर्ख, रोगी-कैसौ हू क्यौं न होय, परंतु स्त्रीन कूँ तौ पति की सेवा अवस्य करनी चाहियै। पातकी की हू सेवा करनी, परंतु वाकी सेवा दूर ते करनी चाहियै।

(पद)

यही पुनि मैं कहत तुम सौं, जगत में यहि सार।
सूर पति-सेवा बिना क्यौं तरौगी संसार।।


(श्लोक)

अस्वर्ग्यमयशस्यं च फल्गु कृच्छ्रं भयावहम्।
जुगुप्सितं च सर्वत्र औपपत्यं कुलस्त्रियाः।।

हे महाभागाऔ, जो स्त्री अपने पति की सेवा करै है वाकी याहू लोक में बड़ाई होय है और अंत समय में स्वर्ग हू प्राप्त होय है। जो पति की सेवा नायँ करै, वाकी याहू लोक में निंदा होय और पीछें तौ नरक प्राप्त होय है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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