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श्रीठाकुरजी क शयन-झाँकी
श्रीबृंदाबन वर्णन
- श्रीबृंदाबन चिदघन कछु छबि बरनि न जाई,
- कृंष्न ललित लीला के काज धरि रह्यौ जड़ताई।
- जहँ नग-खग-मृग-लता-कुंज-वीरुध-तृन जेते,
- नहिन काल गुन प्रभा सदा सोभित रहे तेते।।
- सकल जंतु अबिरुद्ध जहाँ हरि-मृग सँग चरहीं,
- काम-क्रोध-मद-लोभ रहित लीला अनुसरहीं।
- सब दिन रहत बसंत कृष्न-अवलोकनि लोभा,
- त्रिभुवन कानन जा बिभूति कर सोभित सोभा।।
- ज्यौं लक्ष्मी निज रूप अनूप चरन सेवत नित,
- भ्रूबिलसति जु बिभूति जगत जगमगि रहि जित-तित।
- श्री अनंत महिमा अनंत को बरनि सकै कबि,
- संकरसन सौं कछुक कही श्रीमुख जाकी छबि।
- देवन में श्रीरमारमन नारायन प्रभु जस,
- बन में बृंदाबन सुदेस सब दिन सभित अस।।
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