राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 108

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीठाकुरजी क शयन-झाँकी

श्रीबृंदाबन वर्णन

श्रीबृंदाबन चिदघन कछु छबि बरनि न जाई,
कृंष्न ललित लीला के काज धरि रह्यौ जड़ताई।
जहँ नग-खग-मृग-लता-कुंज-वीरुध-तृन जेते,
नहिन काल गुन प्रभा सदा सोभित रहे तेते।।
सकल जंतु अबिरुद्ध जहाँ हरि-मृग सँग चरहीं,
काम-क्रोध-मद-लोभ रहित लीला अनुसरहीं।
सब दिन रहत बसंत कृष्न-अवलोकनि लोभा,
त्रिभुवन कानन जा बिभूति कर सोभित सोभा।।
ज्यौं लक्ष्मी निज रूप अनूप चरन सेवत नित,
भ्रूबिलसति जु बिभूति जगत जगमगि रहि जित-तित।
श्री अनंत महिमा अनंत को बरनि सकै कबि,
संकरसन सौं कछुक कही श्रीमुख जाकी छबि।
देवन में श्रीरमारमन नारायन प्रभु जस,
बन में बृंदाबन सुदेस सब दिन सभित अस।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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