राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 107

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीठाकुरजी क शयन-झाँकी

उर बर पर अति छबि कि भीर कछु बरनि न जाई,
जिहि अंतर जगमगत निरंतर कुँअर कन्हाई।
सुंदर उदर उदार रोमावलि राजति भारी,
हिय सरबर रस पूरि चली मनु उमगि पनारी।।
ता रस की कुंडिका नाभि अस सोभित गहरी,
त्रिबली ता महँ ललित भाँति मनु उपजति लहरी।
गूढ़ जानु आजानु-बाहु मद-गज-गति लोलैं,
गंगादिकनि पबित्र करत अवनी पर डोलैं।।
जब दिनमनि श्रीकृष्न दृगनि तैं दूरि भये दूरि,
पसरि पर्यौ अँधियार सकल संसार घुमड़ि घुरि।
तिमिर-ग्रसित सब लोक ओक लखि दुखित दयाकर,
प्रकट कियौ अद्भुत प्रभाउ भागवत बिभाकर,
ताहू मैं पुनि अति रहस्य यह पंचाध्याई,
तन मँह जैसैं पंच प्रान अस सुक मुनि गाई।
परम रसिक इक मीत मोहिं तिन आग्या दीन्ही,
तातें मैं यह कथा जथामति भाषा कीन्ही।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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