मेरे तो गिरधर गोपाल -रामसुखदास पृ. 75

मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास

11. हम कर्ता-भोक्ता नहीं है

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विचार करें, आप आये तो कोई वस्तु साथ लाये क्या? और जाते हुए कोई वस्तु साथ ले जाओगे क्या? सब कुछ यहीं पड़ा रहेगा। परन्तु उनको अपने काम में लेते रहने से आदत पड़ गयी, जिससे उसकी ममता छोड़ना कठिन हो रहा है। गाढ़ नींद में आपको इन्द्रियाँ -अन्तःकरण से कुछ भी अनुभव नहीं होता। इसलिये जगने पर कहते हैं कि मैं ऐसा सुख से सोया कि कुछ पता नहीं था अर्थात सबके अभाव का और सुख के भाव का अनुभव होता है। इससे सिद्ध हुआ कि इन्द्रियों के बिना भी हमें सुख का अनुभव हुआ। कारण यह है कि जीव स्वाभाविक ही सुख रूप है-

 
ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी ।।[1]

जीव में स्वाभाविक ही सुख है, दुःख है ही नहीं। दुःख-सन्ताप जड़ के सम्बन्ध से ही होते हैं। मन में जो पुरानी बात याद आती है कि बालकपन में मैं खेलता था, पढ़ता था, जवानीपन में मैं अमुक कार्य करता था, वह याद आना भी मन में ही है, हमारे में नहीं है। जो काम शरीर से होता है, वह हमारे से नहीं होता। स्थूल और सूक्ष्म-शरीर से भोगे गये भोग हमारे में नहीं हैं। हम उनसे अलग हैं। यह विशेष ध्यान देने की बात है। हमारे साथ कोई भी चीज रहने वाली नहीं है। हम शरीर नहीं हैं, प्रत्युत भगवान् के साक्षात् अंश हैं। हमारे में कर्तृत्व-भोक्तृत्व नहीं हैं। गीता ने बहुत बढ़िया बात कही है-

‘शरीरस्थोअपि कौन्तेय न करोति न लिप्यते।।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मानस, उत्तर० 117। 1
  2. 12। 31

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