मेरे तो गिरधर गोपाल -रामसुखदास पृ. 101

मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास

15. अनिर्वचनीय प्रेम

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भगवान् श्रीराम को देखकर तत्त्व ज्ञानी जनक भी कह उठे-

सहज बिरागरूप मनु मोरा।
थकित होत जिमि चंद चकोरा।।
इन्हहि बिलोकत अति अनुरागा।
बरबस ब्रह्मसुखहि मन त्यागा।।[1]

सर्वथा पूर्ण होते हुए भी भगवान् शंकर के मन में भगवल्लीला सुनाने की लालसा होती है और जगज्जनी पार्वती के मन में सुनने की लालसा होती है। भगवान् शंकर कैलास को छोड़कर यशोदा जी के पास आते हैं और प्रार्थना करते हैं कि मैया! एक बार अपने लाला का मुख तो दिखा दे! जब वे सतीजी के साथ कैलास जा रहे थे, तब भी मार्ग में भगवान् श्रीराम का दर्शन करके उनकी विचित्र दशा हो गयी-

सतीं सो दसा संभु कै देखी।
उर उपजा संदेहु बिसेषी।।
        संकरु जगतबंद्य जगदीसा।
सुर नर मुनि सब नावत सीसा।।
तिन्ह नृपसुतहि कीन्ह परनामा।।
कहि सच्चिदानंद परधामा।।
भए मगन छबि तासु बिलोकी।
अजहुँ प्रीति उर रहति न रोकी।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (मानस, बाल0 216/2-3)

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