गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 40

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्

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इस अष्टपदी में श्रीभगवान के लिए चार सम्बोधन हैं। पहला सम्बोधन है 'केशव'। भगवान को कई कारणों से 'केशव' कहा जाता है-

  1. वराहवतार में भगवान के जो बाल गिरे, वे कुश रूप में अप्रुरित हुए। वेद-विहित यज्ञादि क्रियाकलापों में कुश की आवश्यकता होती है। बिना कुश के वे कार्यकलाप सम्पन्न नहीं होते। इसलिए भगवान केशव कहलाये।
  2. 'केशाद्वोऽन्यतरस्याम' - इस पाणिनीय सूत्र के अनुसार केश शब्द से प्रसिद्ध अर्थ में 'व' प्रत्यय होकर केशव शब्द बनता है।
  3. श्रीभगवान के द्वादश व्यूहों में 'केशव-व्यूह' का सर्वप्रथम स्थान है।
  4. इस 'केशव' नाम की व्याख्या करते हुए भगवण दर्पणकार कहते हैं 'प्रशस्तस्निग्धनीलकुटिलकुन्तल:' अर्थात्र 'केशव' यह भगवान का नाम उन भगवान के प्रशस्त काले और घुँघराले बालों वाला बतलाता है।
  5. 'केशव: को ब्रह्मा ईशश्च तावपि वयते प्रशस्तीति' अर्थात क ब्रह्मा, ईश महादेव दोनों के नियामक या शासक को केशव कहते हैं।
  6. 'केशान् वयते' गोपियों के केश-संस्कार करने वाले रसिक शेखर श्रीकृष्ण ही 'केशव' कहलाते हैं।
  7. केशी नामक दैत्य का संहार करने वाले केशव हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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