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इस अष्टपदी में श्रीभगवान के लिए चार सम्बोधन हैं। पहला सम्बोधन है 'केशव'। भगवान को कई कारणों से 'केशव' कहा जाता है-
- वराहवतार में भगवान के जो बाल गिरे, वे कुश रूप में अप्रुरित हुए। वेद-विहित यज्ञादि क्रियाकलापों में कुश की आवश्यकता होती है। बिना कुश के वे कार्यकलाप सम्पन्न नहीं होते। इसलिए भगवान केशव कहलाये।
- 'केशाद्वोऽन्यतरस्याम' - इस पाणिनीय सूत्र के अनुसार केश शब्द से प्रसिद्ध अर्थ में 'व' प्रत्यय होकर केशव शब्द बनता है।
- श्रीभगवान के द्वादश व्यूहों में 'केशव-व्यूह' का सर्वप्रथम स्थान है।
- इस 'केशव' नाम की व्याख्या करते हुए भगवण दर्पणकार कहते हैं 'प्रशस्तस्निग्धनीलकुटिलकुन्तल:' अर्थात्र 'केशव' यह भगवान का नाम उन भगवान के प्रशस्त काले और घुँघराले बालों वाला बतलाता है।
- 'केशव: को ब्रह्मा ईशश्च तावपि वयते प्रशस्तीति' अर्थात क ब्रह्मा, ईश महादेव दोनों के नियामक या शासक को केशव कहते हैं।
- 'केशान् वयते' गोपियों के केश-संस्कार करने वाले रसिक शेखर श्रीकृष्ण ही 'केशव' कहलाते हैं।
- केशी नामक दैत्य का संहार करने वाले केशव हैं।
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