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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्
बालबोधिनी - श्रीराधामाधव की लीलामाधुरी की सर्वोत्कर्षता का वर्णन करना ही कवि जयदेव को अभिप्रेत है। वे ग्रन्थ के आरम्भ में 'प्रलयपयोधिजले' श्लोक से लेकर इस अष्टपदी के अन्त तक समस्त अवतारों के मूल आश्रय-स्वरूप अखिल नायक शिरोमणि श्रीकृष्ण के मत्स्यादि अवतारों का वर्णन कर रहे हैं। यह अष्टपदी मालव गौड़ राग में तथा रूपक ताल से गायी जाती है। मालवगौड़ राग का स्वरूप इस प्रकार है- नितम्बिनीचुम्बितवक्त्रपद्म:, शुकद्युति: कुण्डलवान् प्रमत्त:। नितम्बिनी नायिका के द्वारा चुम्बित मुखकमल वाला, शुक के समान हरित-वर्ण की कान्ति वाला, कानों में कुण्डल तथा गले में माला पहने हुए, मदमत्त, रागों का राजा मालव संगीतशाला में प्रवेश करता है। इस अष्टपदी का ताल रूपक है। जैसे अन्त में विराम और द्रुत दोनों के मिलन में विलक्षणा रूपक ताल होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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