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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
दशम अध्याय
श्रीभगवान् ने कहा- कुरुश्रेष्ठ! अब मैं अपनी प्रधान दिव्य विभूतियों को तेरे प्रति कहूँगा; क्योंकि मेरे विस्तार का अन्त नहीं है। अर्जुन! सब भूतों के हृदय में स्थित सबका आत्मा मैं हूँ और मैं ही सम्पूर्ण भूतों का आदि, मध्य और अन्त भी हूँ। मैं अदिति के बारह पुत्रों में विष्णु, ज्योतियों में किरणों वाला सूर्य, मरुतों में मरीचि-उनचास वायु देवताओं का तेज और नक्षत्रों का अधिपति चन्द्रमा हूँ। मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवों में इन्द्र हूँ, इन्द्रियों में मन हूँ और भूत प्राणियों की चेतना (जीवनी शक्ति) हूँ। मैं एकादश रुद्रों में शंकर और यक्ष-राक्षसों में धन का स्वामी कुबेर हूँ। मैं आठ वस्तुओं में पावक (अग्नि) और शिखर वाले पर्वतों में सुमेरु हूँ। पार्थ! पुरोहितों में प्रमुख बृहस्पति तू मुझको जान! मैं सेनापतियों में स्कन्द और जलाशयों में समुद्र हूँ। मैं महर्षियों में भृगु और शब्दों में एक अक्षर (प्रणव-ओंकार) हूँ। सब प्रकार के यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहने वालों में हिमालय हूँ। मैं सब वृक्षों में पीपल, देवर्षियों में नारद, गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्धों में कपिल मुनि हूँ। घोड़ों में अमृत के साथ उत्पन्न होने वाला उच्चैःश्रवा, श्रेष्ठ हाथियों में ऐरावत और मनुष्यों में राजा तू मुझको जान। मैं शस्त्रों में वज्र और गौओं में कामधेनु हूँ। शास्त्रोंक्त रीति से संतान की उत्पत्ति का हेतु कामदेव हूँ और सर्पों में सर्पराज वासुकि हूँ। मैं नागों में शेषनाग और जलचरों का अधिपति वरुण देवता हूँ पितरों में अर्यमा तथा शासन करने वालों में यमराज मैं हूँ। मैं दैत्यों में प्रह्लाद, गणना करने वालों का समय, पशुओं में मृगराज सिंह और पक्षियों में मैं गरुड़ हूँ। मैं पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्र धारियों में श्री राम हूँ। मछलियों में मगर और नदियों में जाह्नवी-श्री गंगाजी हूँ। अर्जुन! सृष्टियों का आदि, अन्त और मध्य भी मैं ही हूँ। मैं विद्याओं में अध्यात्मविद्या (ब्रह्मविद्या) और परस्पर विवाद करने वालों का तत्व निर्णय के लिये किया जाने वाला वाद हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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