गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण अध्याय- 2सांख्य-योग (32) यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम्। सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्।। (32) धर्म-युद्ध रूप स्वर्ग का खुला द्वार सम्मुख तुम्हारे जो आया स्वतः है। मानो सत्य ही इसे हे कुन्तिकुमार! ऐसा युद्ध सुखी[1] क्षत्री ही पाता है। टीका टिप्पणी और संदर्भ ↑ भाग्यवान। संबंधित लेख गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या - गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1 - भूमिका 66 - महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115 - श्री गणेश वन्दना 122 1. अर्जुन विषाद-योग 126 2. सांख्य-योग 171 3. कर्म-योग 284 4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370 5. कर्म-संन्यास योग 474 6. आत्म-संयम-योग 507 7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569 8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607 9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653 10. विभूति-योग 697 11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752 12. भक्ति-योग 810 13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841 14. गुणत्रय-विभाग-योग 883 15. पुरुषोत्तम-योग 918 16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947 17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982 18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016 अंतिम पृष्ठ 1142 वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः