गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 174

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय- 2
सांख्य-योग
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(4) चौथे कश्मल का अर्थ है अवसाद, अवसन्नता, उत्साह-हीनता, म्लान-चित्त होना, सत्त्वभ्रंश होना, विमन्स्क विषाद आदि होता है। इनमें से किसी भी भाव या भावना द्वारा अभिभूत होने पर क्लीवता, कायरपन, भयभीतता तथा हृदय की दुर्बलता होती है। “मोह” एक ऐसा व्यापक शब्द है जिसके कारण अवसाद अवसन्नता, उत्साह-हीनता, म्लानता आदि भावों का उत्पन्न होना स्वाभाविक तथा इन भावों से अभिभूत होने पर मनुष्य में क्लीवता, दुर्बलता, भय आदि का संचार भी स्वाभाविक है। युद्ध-निर्वेद अतः मोह के कारण भी हो सकता है और इसका स्पष्टीकरण-अध्याय 2 श्लोक 52 के “यदा ते मोह कलिलं बुद्धि व्यतितरिष्यति” से, अध्याय 11 श्लोक 1 के “यत्तवयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम” वाक्य से, अध्याय 18 श्लोक 73 के “नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा” वाक्य से तथा अध्याय 18 श्लोक 72 के “कच्चिदज्ञान समोहः प्रनष्टस्ते धनुंजय” से होता है।

यहाँ इन श्लोकों में अतः “कश्मल” कार्य रूप में प्रयुक्त किया गया है। जिसका कारण “मोह” है। इन कारणों से कश्मल का अर्थ प्रस्तुत अनुवाद में युद्ध-निर्वेद” किया गया है जिसमें मोह आदि समस्त भाव व भावनाएँ अन्तर्हित हैं। श्रीमद्भागवत अध्याय 1 (महात्मय) श्लोक 65 में, अ. 2 श्लोक 2 में, तथा अ. 5 श्लोक 52 में भी “कश्मल” शब्द का प्रयोग किया गया है। अध्याय 1 श्लोक 65 में युवतीरूपा भक्ति से नारदजी ने कहा है कि-“सर्वं वक्ष्यामि ते भद्रे कश्मलं ते गमिष्यति” इसकी पृष्ठभूमि यह है कि कलियुगागमन पर देवर्षि नारद पृथ्वी का भ्रमण करने पृथ्वी पर आए तो उन्होंने कलियुग द्वारा समस्त पृथ्वी को पीड़ित देखा। “भक्ति” एक युवती के रूप में खिन्न मनस्क हो बैठी थी, उसके पास ही उसके पुत्र “ज्ञान और वैराग्य” वृद्ध पुरुषों के रूप में अचेतावस्था में जर्जरभूत हो पड़े थे, गंगा नदी तथा अन्य नदियाँ देवयिों के रूप में उनकी सेवा कर रही थीं। “ज्ञान और विराग” पुत्रों की जर्जर अवस्था हो जाने के कारण ‘भक्ति’ खिन्न थी, अवसन्न थी व दुःखी थी। कलियुग के प्रभाव के कारण जो यह विषाद या दुःख “भक्ति” को हुआ उससे त्राण पाने का उपाय “भक्ति” ने नारद से पूछा उसके उत्तर में नारद ने “भक्ति” से उपरोक्त श्लोक 65 में कहा कि, “हे भद्रे! मैं तुमको कलियुग के प्रभाव का वर्णन करूँगा जिसे सुनकर तुम्हारा कश्मल (दुःख, अवसाद, अवसन्नता, म्लानता) दूर हो जावेगा।” अतः यहाँ कश्मल का अर्थ अवसाद, अवसन्नता, म्लानता या दुःख है जिसका कारण कलियुग है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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