गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण अध्याय-18मोक्ष-संन्यास-योग (56) सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्व्यपाश्रय:। मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम्॥ कर मदार्पण से आश्रय मेरा कर्म समस्त सदा जो करता। परम अनुग्रह प्राप्त कर मेरा शाश्वत पद अव्यय पा लेता।। टीका टिप्पणी और संदर्भ संबंधित लेख गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या - गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1 - भूमिका 66 - महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115 - श्री गणेश वन्दना 122 1. अर्जुन विषाद-योग 126 2. सांख्य-योग 171 3. कर्म-योग 284 4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370 5. कर्म-संन्यास योग 474 6. आत्म-संयम-योग 507 7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569 8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607 9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653 10. विभूति-योग 697 11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752 12. भक्ति-योग 810 13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841 14. गुणत्रय-विभाग-योग 883 15. पुरुषोत्तम-योग 918 16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947 17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982 18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016 अंतिम पृष्ठ 1142 वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः