गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 1094

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय-18
मोक्ष-संन्यास-योग
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(49)
असक्त बुद्धि: सर्वत्र
जितात्मा विगतस्पृह: ।
नैष्कर्म्यसिद्धिं परमां
सन्न्यासेनाधिगच्छति ॥

सर्वत्र अनासक्त-बुद्धि ही
स्पृहा-हीन विजितात्म ही।
करता प्राप्त संन्यास[1] से भी
परम नैष्कर्म-सिद्धि[2]ही।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संन्यास (त्याग) के द्वारा, जो कापिल सांख्य शास्त्र द्वारा प्रतिपादित किया गया है
  2. निष्काम व फलाशा विरहित सिद्धि

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5. कर्म-संन्यास योग 474
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17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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