गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 1064

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय-18
मोक्ष-संन्यास-योग
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।। धृति-भेद है।।
(33)

धृत्या यया धारयते
मन: प्राणेन्द्रिय क्रिया: ।
योगेनाव्यभिचारिण्या
धृति: सा पार्थ सात्त्विकी ॥

योग[1] से अव्यभिचारिणी धृति को
धारण कर है पार्थ! व्यक्ति जो।
करता मन प्राणेन्द्रिय क्रिया को
होती सात्त्विक - धृति पार्थ! वो।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
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5. कर्म-संन्यास योग 474
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18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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