गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 254

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साम्यसूत्र-वृत्तिः
अध्याय 15
(82) पुरुषकारात् भक्तिरभिन्ना - 5

1. पूर्णयोगः
2. वृक्षरूपकम्
3. त्रैगुण्य-रामायणम्
4. निस्त्रैगुण्ये कमलवत्
5. यत्नवीरं कामयन्ते वेदाः

(83) तया स सुकरः - 2

6. ज्ञानकर्मप्रेम्णस् त्रिपदी
7. प्रेम्णा तपः शीतलम्

(84) त्रैतं सेवार्थम् - 5

8. सेव्य-सेवक-साधन-त्रिपुटी
9. सेव्य-सेवकौ सनातनौ
10. साधनरूपा सृष्टिर् नित्यनूतनी
11. चंद्रकला सुमनमाला
12. नवनव-प्रसवा

(85) सैव भक्तिरनहंकृता चेत् - 2

13. दैनंदिनी सेवा
14. निरहंकृता भक्तिरूपा

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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