गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 187

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पंद्रहवां अध्याय
पूर्णयोग: सर्वत्र पुरुषोत्तम-दर्शन
87. सर्व वेद-सार मेरे ही हाथों में

21. यह सब वेदों का सार है। वेद अनंत हैं, परंतु उन अनंत वेदों का सार-संक्षेप यह पुरुषोत्तम-योग है। वेद हैं कहां? वेदों की बात विचित्र है। वेदों का सार है कहां? अध्याय के प्रारंभ में ही कहा है- छंदांसि यस्य पर्णानि- ‘पत्ते हैं जिसके वेद।’ भाई, वेद तो इस वृक्ष के एक-एक पत्ते में भरे हुए हैं। वेद उन संहिताओं में, आपके ग्रंथों और पोथियों में छिपे हुए नहीं हैं। वे विश्व में सर्वत्र फैले हैं। वह अंग्रेज कवि शेक्सपियर कहता है- ‘बहते हुए झरनों में सदग्रंथ मिलते हैं, पत्थरों-चट्टानों से प्रवचन सुनायी पड़ते हैं।’ सारांश यह कि वेद न संस्कृत में हैं, न संहिताओं में, वे सृष्टि में हैं। सेवा करो तो दिखायी देंगे।

22. प्रभाते करदर्शनम्- सुबह उठते ही अपनी हथेली देखनी चाहिए। सारे वेद हाथ में हैं। वह वेद कहता है, ‘सेवा करो।’ कल हाथ ने काम किया था या नहीं, आज करने को तैयार है या नहीं, उसमें काम से घट्टे पड़े हैं या नहीं, यह देखिए। सेवा करके जब हाथ घिस जाता है, तो फिर ब्रह्य लिखित प्रकट होता है, यह अर्थ है ‘प्रभाते करदर्शनम्’ का।

23. पूछते हैं, वेद कहाँ है? भाई, तुम्हारे पास ही तो हैं। हमें-तुम्हें तो जन्मतः ही वे प्राप्त हैं। मैं खुद ही जीता-जागता वेद हूँ। अब तक की सारी परंपरा मुझमें आत्मसात् हुई है। मैं उस परंपरा का फल हूँ। उस वेद बीज का जो फल है, वही तो मैं हूँ। अपने फल में मैंने अनंत वेदों का बीच संचित कर रखा है। मेरे उदर में वेद पांच-पचास गुना बड़े हो गये।

24. सारांश, वेदों का सार हमारे हाथों में है। सेवा, प्रेम और ज्ञान की नींव पर हमें जीवन गढ़ना होगा। इसी का अर्थ है, वेद हाथों में हैं। मैं जो अर्थ करूंगा, वही वेद होगा, वेद कहीं बाहर नहीं हैं। सेवामूर्ति संत करते हैं- वेदाचा तो अर्थ आम्हांसी च ठावा- ‘वेदों का जो अर्थ है, वह एक हम ही जानते हैं।’ भगवान कर हरे है- ‘सारे वेद मुझे ही जानते हैं। मैं ही बस वेदों का सत्त्वांश, सार पुरुषोत्तम हूँ। ‘यह जो वेदों का सार पुरुषोत्तम-योग है, उसे यदि हम अपने जीवन में आत्मसात् कर सकें, तो कितना आनंद होगा? ऐसा पुरुष फिर जो कुछ करता है, उसमें से वेद ही प्रकट होते हैं, ऐसा गीता सुझाती है। इस अध्याय में सारी गीता का सार आ गया है। गीता की शिक्षा इसमें पूर्णरूप से प्रकट हुई है। उसे अपने जीवन में उतारने का हमें रात-दिन प्रयत्न करना चाहिए। और क्या? [1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रविवार-29-5-32

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गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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