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तेरहवां अध्याय
आत्मानात्म-विवेक
70. तत्त्वमसि
14. इसलिए भगवान ने इस तेरहवें अध्याय में जो विचार हमें दिया है, वह बड़ा कीमती है। 'तू देह नहीं, आत्मा है।' तत् त्वमसि- वह आत्मरूप तू है। यह बड़ा उच्च, पवित्र उद्गार है। पावन और उदात्त वचन है। संस्कृत-साहित्य में यह बड़ा ही महान विचार समाविष्ट किया गया है- "यह ऊपर का कवच, छिलका, तू नहीं है। वह असल अविनाशी फल तू है।" जिस क्षण मनुष्य के हृदय में यह विचार स्फुरित होगा कि 'सो तू है', 'यह देह मैं नहीं, वह परमात्मा मैं हूं'- यह भाव मन में जग जायेगा, उसी क्षण उसके मन में एक प्रकार का अननुभूत आनंद लहराने लगेगा। मेरे उस रूप को मिटाने का- नष्ट कर डालने का- सामर्थ्य संसार की किसी भी वस्तु में नहीं है, किसी भी व्यक्ति में नहीं है। यह सूक्ष्म विचार इस उद्गार में भरा हुआ है।
15. इस देह से परे अविनाशी और निष्कलंक जो आत्मतत्त्व है, वही मैं हूँ। उस आत्मतत्त्व के लिए मुझे यह शरीर मिला हुआ है। जब-जब उस परमेश्वरीय तत्त्व के दूषित हो जाने की संभावना होगी, तब-तब मैं उसे बचाने के लिए इस देह को फेंक दूंगा। परमेश्वरीय तत्त्व को उज्ज्वल रखने के लिए यह देह होमने को मैं सदा तैयार रहूंगा। मैं जो इस देह पर सवार होकर आया हूं, सो क्या इसलिए कि अपनी दुर्दशा कराऊं? देह पर मेरी सत्ता चलनी चाहिए। मैं इस देह का उपयोग करूंगा और इसके द्वारा हित-मंगल की वृद्धि करूंगा। आनंदें भरीन तिन्ही लोक- 'त्रिलोक में आनंद भरूंगा।' इस देह को मैं महान तत्त्वों के लिए फेंक दूंगा और ईश्वर का जयजयकार करूंगा। रईस आदमी कपड़ा मैला होते ही उसे फेंक देता है और दूसरा पहन लेता है, वैसे ही मैं भी करूंगा। काम के लिए इस देह की जरूरत है। जिस समय यह देह काम के लायक नहीं रह जायेगी, उस समय इसे फेंक देने में मुझे कोई हर्ज नहीं।
16. सत्याग्रह के द्वारा हमें यही शिक्षा मिलती है। देह और आत्मा, ये अलग-अलग चीजें हैं। जिस दिन मनुष्य के यह ध्यान में आयेगा, जब वह इस मर्म को समझ जायेगा, उसी दिन उसकी सच्ची शिक्षा की, वास्तविक विकास की शुरूआत होगी। उसी समय हमें सत्याग्रह सधेगा। अतः प्रत्येक को यह भावना हृदय में अंकित कर लेनी चाहिए। देह तो निमित्तमात्र साधन है, परमेश्वर का दिया हुआ एक औजार है। जिस दिन उसका उपयोग समाप्त होगा, उसी दिन उसे फेंक देना है। सर्दी के गरम कपड़े हम गर्मियों में फेंक देते हैं, रात को ओढ़े हुए कंबल सुबह हटा देते हैं, सुबह के कपड़े दोपहर को निकाल देते हैं, उसी तरह इस देह को समझो। जब तक देह का उपयोग है, तब तक उसे रखेंगे। जिस दिन इसका उपयोग नहीं रहेगा, उसी दिन यह देहरूपी कपड़ा फेंक देंगे। आत्मा के विकास के लिए भगवान यह युक्ति हमें बता रहे हैं।
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