गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 362

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

नवम: सर्ग:
मुग्ध-मुकुन्द:

अष्टदश: सन्दर्भ:

18. गीतम्

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सान्द्रानन्द-पुरन्दरादि- दिविषद्वृन्दैरमन्दादरा-
दानम्र मुकुटेन्द्र नीलमणिभि: सन्दर्शितेन्दिन्दिरम्।
स्वच्छन्दं मकरन्द-सुन्दर-गलन्मन्दाकिनी-मेदुरं
श्रीगोविन्दपदारविन्दमशुभस्कन्दाय वन्दामहे ॥2॥[1]

इति अष्टादश सन्दर्भ:।
इति श्रीगीतगोविन्दे महाकाव्ये कलहान्तरिता वर्णने मुग्ध-मुकुन्दो
नाम नवम: सर्ग:।

अनुवाद- बलि राजा का गर्व खर्व होने से महान आनन्द में निमग्न देवतागण बड़े आदर के साथ जिन चरणों में प्रणत हुए, इन्द्रनीलमणिमय मुकुट की शोभा निज चरणों में प्रतिबिम्बित होने से जो चरण नीलकुवलय सदृश प्रतीत हुए, मकरन्द के समान मनोहारिणी मन्दाकिनी जिन चरणों से अनायास ही स्वच्छन्दतापूर्वक नि:सृत हुई है, समस्त अशुभों का निराकरण करने वाले श्रीकृष्ण के उन श्रीचरणकमलों की हम वन्दना करते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अन्वय- [सम्प्रति श्रीकृष्णस्य ऐश्वर्यं वर्णायन्नाशिषा सर्गं समापयति]- सान्द्रानन्द-पुरन्दरादि-दिविषद्रवृन्दै: (वलेर्नियमानात् सान्द्र: निविड़: आनन्दो येषां तेषां पुरन्दरादीनां दिविषदां देवानां वृन्दै:) अमन्दादरात् (अधिकादरात्र) आनम्रै: (सम्यक् प्रणतै:) [सद्भि]: मुकुटैन्द्रनीलमणिभि: (मुकुटस्थै: इन्द्रनीलमणिभि:) सन्दशितेन्दिन्दिरं (सन्दर्शित: इन्दिन्दिर: भ्रमरो यत्र तादृशं) [तथा] स्वच्छन्दं [यथा तथा] मकरन्द-सुन्दर-गलन्मन्दाकिनीमेदुरं (मकरन्दवत् सुन्दरं यथा तथा गलन्त्या क्षरन्त्या मन्दाकिन्या आकाशगंगया मेदुरं स्निग्धं) श्रीगोविन्दपदारविन्दम् अशुभस्कन्दाय (अशुभानां भक्तिप्रतिबन्धकानां विनाशाय) वन्दामहे (प्रणमाम:) [अतएव श्रीराधिकामानोपशमनचिन्तया मुग्धो मुकुन्दो यत्र सोऽयं सर्गो नवम:] ॥2॥

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सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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