कवित्त
आजु बरसाने बरसाने सब आनंद सों,
लाड़िली बरस गाँठि आई छबि छाई है।
कौतुक अपार घर घर रंग बिसतार,
रहत निहारि सुध बुध बिसराई है।
आये ब्रजराज ब्रजरानी दधि दानी संग,
अति ही उमंगे रूप रासि लूटि पाई है।
गुनी जन गान धन दान सनमान, बाजे-
पौरनि निसान रसखान मन भाई है।।194।।