"सुजान-रसखान पृ. 84" के अवतरणों में अंतर

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आये ब्रजराज ब्रजरानी दधि दानी संग,
 
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अति ही उमंगे रूप रासि लूटि पाई है।
 
अति ही उमंगे रूप रासि लूटि पाई है।
गुनी जन गान धन दान सनमान, बाजे -
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गुनी जन गान धन दान सनमान, बाजे-
 
पौरनि निसान रसखान मन भाई है।।194।।
 
पौरनि निसान रसखान मन भाई है।।194।।
 
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17:39, 9 मार्च 2018 के समय का अवतरण

सुजान-रसखान

राधा का सौंदर्य

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कवित्त

आजु बरसाने बरसाने सब आनंद सों,
लाड़िली बरस गाँठि आई छबि छाई है।
कौतुक अपार घर घर रंग बिसतार,
रहत निहारि सुध बुध बिसराई है।
आये ब्रजराज ब्रजरानी दधि दानी संग,
अति ही उमंगे रूप रासि लूटि पाई है।
गुनी जन गान धन दान सनमान, बाजे-
पौरनि निसान रसखान मन भाई है।।194।।

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