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कुंडल कान लसैं रसखानि विलोकन तीर अनंग तुनीर के।
 
कुंडल कान लसैं रसखानि विलोकन तीर अनंग तुनीर के।
 
डारि ठगौरी गयौ चित चोरि लिए है सबैं सुख सोखि सरीर के।
 
डारि ठगौरी गयौ चित चोरि लिए है सबैं सुख सोखि सरीर के।

17:03, 9 मार्च 2018 के समय का अवतरण

सुजान-रसखान

कृष्‍ण सौंदर्य

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सवैया

बाँकी धरै कलगी सिर ऊपर बाँसुरी-तान कटै रस बीर के।
कुंडल कान लसैं रसखानि विलोकन तीर अनंग तुनीर के।
डारि ठगौरी गयौ चित चोरि लिए है सबैं सुख सोखि सरीर के।
जात चलावन मो अबला यह कौन कला है भला वे अहीर के।।88।।

कौन की नागरि रूप की आगरि जाति लिए संग कौन की बेटी।
जाको लसै मुख चंद-समान सु कोमल अँगनि रूप-लपेटी।
लाल रही चुप लागि है डीठि सु जाके कहूँ उर बात न मेटी।
टोकत ही टटकार लगी रसखानि भई मनौ कारिख-पेटी।।89।।

मकराकृत कुंडल गुंज की माल के लाल लसै पग पाँवरिया।
बछरानि चरावन के मिस भावतो दै गयौ भावती भाँवरिया।
रसखानि बिलोकत ही सिगरी भईं बावरिया ब्रज-डाँवरिया।
सजती ईहिं गोकुल मैं विष सो बगरायौ हे नंद की साँवरिया।।90।।

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