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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
षोेड़श शतकम्
गोवर्धन की जो घटदान लीला है वह, एवं यमुना में स्नान-केलि विलासादि एवं यमुना पार जाने के कर चुकाने के बहाने जो लीला हुई थी, वे एवं और श्रीवृन्दावन के वृक्ष वाटिकादि के कुसुम चोरी आदि की जो लीलाएं- वे समस्त श्रीराधामाधव की विनोद लहरी मेरे हृदय में स्फुरित हो।।47।।
श्रीवृन्दावन को छोड़कर मत जाओ। जनसंगादि में भी मत जाओ क्योंकि सर्वत्र ही भय है। वही राधिका वही सार-राधिका अर्थात पूर्णतम सार वस्तु नव वाटिका को पूर्ण रसोत्सव से शोभित कर रही हैं।।48।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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