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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
त्रयोदश शतकम्
हे मूर्ख! मूर्खता मत कर, मृग नैनी स्त्री की ओर देखने का और साहस न करना, सबको ग्रास करने वाले सर्प के साथ खेलना नहीं, शरीर के लिये सब अनर्थों का मूल कारण जो धन है उसे भी भिक्षा का क्लेश मान करके सञ्चय नहीं करना, श्रीवृन्दावन ने ही केवल स्थिर रहने का निश्चय कर।।65।।
एक मात्र जो श्रीराधा के चरण कमलों की असीम असाधारण भाव रूप सम्पत्ति को मान करने वाली हैं- उसी श्रीवृन्दावन की कीर्त्ति दो छोड़कर भी बातों में अपने कानों को कौन लगाये।।66।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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