विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
त्रयोदश शतकम्
जब अपनी सखियों को शिक्षा देने के लिये मेरी स्वामिनी श्रीराधा मान पूर्वक अति दृढ़ रूप से मौन धारण करती हैं, तब स्वयं श्री हरि निखिल कामों को भुलाकर जिसे पुष्प फलादिकों द्वारा सन्तुष्ट कराते हैं उस श्री वृन्दाटवि को नमस्कार कर।।39।।
जब श्रीराधा पुलकित विग्रह से श्रीवृन्दावन की, गुणावली वर्णन करती हैं, तब भ्रमरी संगीतरंग को छोड़ देती है, कोकिला फिर पंचम स्वर में आलाप नहीं करती, शुक तब कोई भी गाथा नहीं उच्चारण करता, नृत्यकारी मयूर भी केकाध्वनि नहीं करता, वीणा लज्जित होकर चुप हो जाता है तथा मुरली फिर शोर नहीं कर पाती।।40। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज