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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
त्रयोदश शतकम्
अरे! स्त्री, पुत्र, धनादि में ममता बढ़ाने का यह समय नहीं है, यह शरीर मृत्यु के अनुगत है। समस्त दुर्लभ वस्तुओं में भी अति सुदुर्लभ यह श्रीवृन्दावन अपनी कृपा से इस पृथ्वी पर प्रगट हुआ है, इसलिये शीघ्रातिशीघ्र श्रीवृन्दावन की ओर दौड़कर चल।।21।।
अहो! मन्दमति पुरुष चिदानन्दरूप श्रीवृन्दावन की स्थावर-जंगमात्मक वस्तुओं को गुणमय (मायिक) जानकर ही साधन करते हैं, परन्तु हमें तो श्रीराधा-मुरलिधर की केवल दास्य रसमय सम्पत्ति युक्त समस्त वस्तुओं में महा स्थावर जंगमात्मक बीजद्वय समस्त का वन्दन करने योग्य ही अनुभव होता है।।22।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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