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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
प्रथमं शतकम्
उत्तम उत्तम वस्त्र भूषणादि की प्राप्ति में अथवा कर-पदादि के काटे या जलाये जाने पर, कोटि-कोटि निन्दा अथवा प्रशंसा होने पर एवं बहु सम्पत्ति किंवा दीनता प्राप्त होने पर भी जीवन्मृत की तरह कभी भी किसी प्रकार से विकार को प्राप्त न होकर परम प्रिय महानन्द-बीज स्वरूप इस श्री वृन्दावन का आश्रय करता हूँ।।29।।
यदि श्रीवृन्दावन में तेरा जीवन हो, तो दुखों को तू सुख समूह जान, अपयश को परमा-कीर्त्ति मान, अधम पुरुषों के द्वारा अत्यन्त अपमानित होने पर उसे ही तू साधु पुरुषों के द्वारा किये हुए सम्मानवत् जान, दरिद्रता-राशि को महा विभूति स्वरूप, अत्युत्तम (मायिक) लाभों की महाक्षति-स्वरूप एवं पाप समूह को पुण्य रूप प्रतीत कर।।30।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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